यूपी में शौचालय योजना में भ्रष्टाचार

ना खाऊंगा ना खाने दूंगा के वादे के साथ साल 2014 में नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री के रूप में सत्ता संभाली
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2023-09-04 18:45:22

के. पी. मलिक

ना खाऊंगा ना खाने दूंगा के वादे के साथ साल 2014 में नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री के रूप में सत्ता संभाली, लेकिन उनकी सरकार भी दूसरी सरकारों की तरह कई योजनाओं में भ्रष्टाचार रोकने में नाकाम साबित रही है। दरअसल हिंदुस्तान में भ्रष्टाचार किसी एक व्यक्ति के संकल्प से नहीं रुकेगा। इसके लिए ऊपर से नीचे तक सबको ईमानदार होना पड़ेगा। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भी कुछ करप्ट अधिकारियों के चलते कई तरह के घोटाले सामने आते रहते हैं। समाजसेवी, आरटीआई एक्टिविस्ट और पेशे से किसान सुमित मलिक ने कड़ी मेहनत करके स्वच्छ भारत अभियान के तहत शौचालय योजना में इसी तरह का भ्रष्टाचार उजागर किया है।

दरअसल, स्वच्छ भारत अभियान केंद्र सरकार का वो राष्ट्रीय अभियान है, जिसका मकसद देश को हर तरह से साफ-सुथरा बनाना है। 2 अक्टूबर 2014 को खुद प्रधानमंत्री ने झाड़ू लगाकर दिल्ली में इस अभियान की शुरूआत की थी। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का आजादी का सपना तो पूरे देश ने मिलकर पूरा किया, लेकिन उनका स्वच्छ भारत का सपना पूरा नहीं हो सका है, जिसकी शुरुआत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने की। प्रधानमत्री मोदी के इसी स्वच्छ भारत अभियान की एक योजना है खुले में शौच मुक्त भारत, जिसके तहत केंद्र की मोदी सरकार ने घर-घर शौचालय होने का संकल्प लिया। इस योजना के तहत जिस व्यक्ति के यहां शौचालय बनना था, उसके पात्र होने पर, उसके खाते में केंद्र की मोदी सरकार की तरफ से 12 हजार रुपए भेजे गए।

पूरे देश के साथ-साथ पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में भी इस योजना के तहत स्वच्छ भारत मिशन के तहत लाखों लोगों को शौचालय बनाने के लिए पैसा मिला। शौचालय के लिए व्यक्ति की पात्रता गरीबी रेखा के नीचे आने वाले व्यक्तियों की थी, और उन्हें ही शौचालय के लिए 12 हजार रुपए की धनराशि मिलनी थी। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, इस योजना के तहत मुजफ्फरनगर जिला के ग्रामीण इलाकों में 53 हजार 183 शौचालय बनाए गए। मुजफ्फरनगर में कुल 498 गांव हैं, जो कि 9 ब्लॉकों के अंतर्गत आते हैं।

सुमित मलिक ने गांव-गांव जाकर पहले शौचालयों के बनने और अपात्रों को पैसा मिलने की जानकारी इक्ट्ठा की और फिर आरटीआई के जरिए भ्रष्टाचार को उजागर किया। सुमित मलिक ने आरटीआई और खुद के सर्वे में पाया कि फर्जी तरीके से हजारों अपात्र लोगों को शौचालय का पैदा मुहैया कराया गया है। सुमित मलिक के मुताबिक, जिला राज पंचायत अधिकारी और कर्मचारियों की मिली भगत से फर्जी तरीके से कई कर्मचारियों के ही परिवार वालों के अकाउंटों में ही पहली किस्त के 6हज़ार रुपए भेजे गए। आरटीआई कार्यकर्ता द्वारा मुख्यमंत्री योगी से भी इस भ्रष्टाचार की शिकायत 25 जून 2018 में की गई और मुख्यमंत्री योगी के संज्ञान में शौचालय भ्रष्टाचार का मामला आते ही, इसकी जांच के लिए उत्तर प्रदेश शासन ने एक जांच टीम का गठन करके जांच के आदेश दिए।

जांच टीम ने पाया कि सिर्फ मुजफ्फरनगर के ग्रामीण इलाकों में 2 हजार 130 अपात्र लोगों को शौचालय का पैसा मिला। जांच के बात इन अपात्र लोगों के खिलाफ प्रशासनिक कार्रवाई की गई और मुजफ्फरनगर जिला के कई ब्लॉकों में अधिकारियों ने रिकवरी अभियान चलाया। इस रिकवरी अभियान के तहत अभी तक सरकार को तरकरीबन 23 लाख रुपए वापस मिल चुके हैं, जबकि अभी भी तकरीबन 1 करोड़ 82 लाख 10 हजार रुपए की रिकवरी बाकी है। रिकवरी राशि तकरीबन 2 करोड 5 लाक 10 हजार की है, जो अभी तक अफसरों द्वारा अपात्र लोगों से वापस नहीं ली जा सकी है। इस रिकवरी के लिए प्रदेश सरकार का आदेश तो है ही, सुमित मलिक भी अफसरों को प्रार्थना पत्र दे चुके हैं। सुमित मलिक ने साल 2016 से ही इस भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाते हुए संबंधित अफसरों को प्रार्थना पत्र लिखा, लेकिन इस पर कोई उचित कार्रवाही नहीं हुई। इसके बाद में सुमित मलिक ने आरटीआई डालकर जानकारी ली और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी को इस भ्रष्टाचार की जानकारी दी।

प्रदेश सरकार के आदेश के बावजूद करीब पांच साल से ज्यादा समय में अगस्त 2023 तक भी 2 करोड़ 5 लाख 1 0 हजार रुपए की रिकवरी नहीं हो पाई है, जिससे जिला प्रशासन, खास तौर पर जिला राज पंचायत अधिकारी की लापरवाही साफ झलकती है। गलत लोगों से भी इस सरकारी धन की रिकवरी नह ले पाने से अफसरों के इस भ्रष्टाचार में लिप्त होने की आशंका होती है। सुमित मलिक के मुताबकि, वो कई सालों से लगातार इस सरकरी धन की रिकवरी के संदर्भ में बार-बार संबंधित अफसरों को प्रार्थना पत्र देते हैं, लेकिन बकाया धन की रिकवरी अपात्र लोगों से नहीं हो पा रही है।

सुमित मलिक के मुताबिक, ग्रामीण इलाकों में बड़े-बड़े घरों में फर्जी तरीके से एक ही घर दिखाकर 6 शौचालय दिए गए। इतना ही नहीं, जिला राज पंचायत अधिकारी के कुछ कर्मचारियों के अकाउंटों से भी 3 लाख रुपे की धनराशि बरामद की गई। यह भ्रष्टाचार संविदा पर रखे हुए कुछ कर्मचारियों को इस्तेमाल करके किया गया। रिकवरी होते-होते कई वर्ष बीत चुके हैं, लगातार नए-नए जिला राज पंचायत अधिकारी आते हैं और कुछ औपचारिकताएं करते हैं, इतने में उनका ट्रांसफर हो जाता है।

जाहिर है कि सुमित मलिक ने तो सिर्फ पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले के ग्रामीण इलाकों में शौचालय भ्रष्टाचार की पोल खोली है, जाहिर है कि उत्तर प्रदेश ही नहीं, बल्कि पुरे देश में इस प्रकार के भ्रष्टाचार हुए होंगे, क्योंकि भले ही देश में सभी अफसर भ्रष्टाचार में लिप्त नहीं होते, लेकिन भ्रष्ट अफसरों की देश में कमी भी नहीं है।

साल 1985 में देश के तत्कालीन युवा प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने सूखे प्रभावित ओडिशा के कालाहांडी जिले में दौरे के दौरान कहा था कि सरकार जब भी 1 रुपया खर्च करती है तो लोगों तक सिर्फ 15 पैसे ही पहुंच पाते हैं। पूर्व प्रधानमंत्री के इस बयान को प्रधानमंत्री मोदी ने भले ही राजनीतिक इस्तेमाल के लिए प्रयोग किया हो, लेकिन उन्होंने इस बयान को भ्रष्टाचार के एक उदाहरण के तौर पर बयान किया है। मेरा इसीलिए मानना है कि दूसरी सरकारों की तरह ही केंद्र की मोदी सरकार भी अपने 9 साल के शासनकाल में भ्रष्टाचार को खत्म करने के अपने वायदे को पूरा करने में असफल ही मानी जाएगी। केंद्र की मोदी सरकार ने 2 अक्टूबर 2019 तक खुले में शौंच मुक्त भारत करने का लक्ष्य रखा था, जिसके तहत हिंदुस्तान के ग्रामीण इलाकों में 1.96 लाख करोड़ रुपए की अनुमानित लागत से 1.2 करोड़ शौचालय बनाए जाने थे, लेकिन सवाल यह है कि क्या ऐसा हो पाया? अगर इस परियोजना की सही से जांच हो जाए, तो मुझे नहीं लगता कि सरकार अपने इस लक्ष्य को अभी भी हकीकत में छू सकी होगी।

केंद्र की मोदी सरकार ने स्वच्छ भारत अभियान को पूरा करने के लिए सचिन तेंडुलकर, प्रियंका चोपड़ा, अनिल अंबानी, बाबा रामदेव, सलमान खान, शशि थरूर, महेंद्र सिंह धोनी, विराट कोहली, मृदुला सिन्हा और कमल हसन जैसे दिग्गजों को इसका ब्रांड एंबेसडर बनाया, लेकिन क्या इतने ब्रांड एंबेसडरों में से किसी ने इस अभियान को सही तरीके से ईमानदारी से आगे बढ़ाया। क्या हर देशवासी को यह मालूम है कि किसी कंपनी या चीज या योजना के एक ब्रांड एंबेसडर को करोड़ों रुपए दिए जाते हैं? इसके अलावा विज्ञापनों में करोड़ों रुपए पानी की तरह बहाए जाते हैं। इसका मतलब यह है कि जितना पैसा केंद्र सरकार स्वच्छ भारत अभियान के तहत लोगों पर खर्च करती है,तकरीबन उतना ही पैसा विज्ञापनों और ब्रांड एंबेसडरों पर खर्च हो जाता होगा।

इसके अलावा राज्य सरकारें खर्च करती हैं, सो अलग। आज भी गांवों से लेकर शहरों तक में खुले में शौच को जाते हैं। शहरों की अगर हम बात करें, तो वहां तो पहले भी वही लोग खुले में शौच को जाते थे, जो रेलवे की पटरियों के किनारे बसे हुए हैं या खुले आसमान के नीचे रहते हैं। आज भी उन्हीं में से काफी लोग खुले में शौच को जाते हैं। हालांकि गांवों में खुले में शौच जाने वालों की संख्या पहले से काफी कम हुई है, लेकिन शून्य नहीं हुई है। अभी भी कई गांव ऐसे हैं, जहां कई लोगों को स्वच्छ भारत अभियान की इस योजना का लाभ नहीं मिल सका है।

हालांकि केंद्र की मोदी सरकार के स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) चरण-II क्रियान्यवयन के दिशा-निर्देश 2020 में कहा गया है कि स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण), जिसे दुनिया का सबसे बड़ा व्यवहार परिवर्तन कार्यक्रम कहा गया है, के तहत जमीनी स्तर पर जन आंदोलन पैदा करके इस असंभव से लगने वाले कार्य को पूरा किया गया। इसके परिणाम स्वरूप ग्रामीण स्वच्छता कवरेज जो वर्ष 2014 में 39 फीसदी था, वर्ष 2019 में बढ़कर 100 फीसदी हो गया और 36 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में 10.28 करोड़ से अधिक शौचालय बनाए गए। स्वच्छ भारत का उद्देश्य व्यक्ति, क्लस्टर और सामुदायिक शौचालयों के निर्माण के माध्यम से खुले में शौच की समस्या को कम करना या समाप्त करना है।

यहां बताना जरूरी है कि केंद्र की मोदी सरकार के पहले साल 1999 से साल 2012 तक केंद्र की सरकारों ने हिंदुस्तान को साफ-सुथरा बनाने के लिए निर्मल भारत अभियान चलाया था, जिसका मकसद भी पूर्ण स्वच्छता अभियान, था। लेकिन उस योजना के तहत भी हिंदुस्तान साफ-सुथरा नहीं हो सका। आगामी साल 2024 में लोकसभा के चुनाव होने हैं और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश को मजबूत बनाने के लिए अभी से अपने तीसरे कार्यकाल के वादे कर रहे हैं। उनका कहना है कि वो तीसरे कार्यकाल में देश के हर सपने को पूरा करेंगे। अब यह निर्णय जनता पर है कि वो किसे चुनती है?

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक हैं)

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