जहां ले चलोगे वहीं में चलूंगा जहां नाथ रख दोगे वहीं में रहूंगापूज्य राजन जी महाराज

नगर लहार के प्रसिद्ध धार्मिक स्थल तालेश्वर सरकार पर प्रदेश कार्यसमिति सदस्य अम्बरीष शर्मा गुड्डू भैया द्वारा आयोजित
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2023-09-09 15:37:01

नगर लहार के प्रसिद्ध धार्मिक स्थल तालेश्वर सरकार पर प्रदेश कार्यसमिति सदस्य अम्बरीष शर्मा गुड्डू भैया द्वारा आयोजित रामकथा के आठवें दिन पूज्य महाराज स्वर सम्राट राजन जी महाराज ने कहा कि भगवान राम को वापस अयोध्या लाने के लिए वे अपने बड़े भाई भगवान राम से मिलने का निश्चय करते हैं राजकुमार भरत को यह पता चलता है कि प्रभु श्री राम अपने छोटे भाई लक्ष्मण और पत्नि सीता के साथ चित्रकूट में ठहरे हुए हैं, तब राजकुमार भरत तुरंत ही उनसे मिलने के लिए चित्रकूट की ओर प्रस्थान करते हैं. उनके साथ उनका सैन्य दल भी होता हैं क्योंकि वे यह सुनिश्चित करना चाहते थे कि कहीं बड़े भाई श्री राम को कोई क्षति न पहुंचा सकें,

इसीलिए उनकी सुरक्षा हेतु वे सैनिकों के साथ जाते हैं वहीं दूसरी ओर चित्रकूट में भगवान श्री राम, लक्ष्मणजी और माता सीता अपनी कुटिया के बाहर शांति पूर्वक बैठे हुए हैं. तभी उन्हें कहीं से पदचाप और इस कारण धूल उड़ती हुई दिखाई देती हैं. कुछ ही समय में यह ध्वनि तीव्र हो जाती हैं और तभी कोई वनवासी उन्हें यह समाचार देता हैं कि “राजकुमार भरत अपनी सेना के साथ चित्रकूट पधार रहे हैं और जल्दी ही वे यहाँ पहुँच जाएँगे यह समाचार सुनकर लक्ष्मणजी बहुत क्रोधित हो जाते हैं और प्रभु श्री राम से कहते हैं कि “जैसी माता, वैसा पुत्र”. राजकुमार भरत अपनी सेना के साथ आप पर हमला करने आ रहे हैं, वे यह सोचते हैं कि आप वन में अकेले हैं, हमारे पास कोई सैन्य शक्ति नहीं हैं

तो वे आसानी से हमें मारकर अयोध्या का राज्य हड़प लेंगे. तब मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम लक्ष्मणजी को समझाते हुए कहते हैं कि “शांत हो जाओ लक्ष्मण, भरत ऐसा नहीं हैं, उसके विचार बहुत ही उच्च हैं और उसका चरित्र बहुत ही अच्छा हैं, बल्कि वो तो स्वप्न में भी अपने भाई के साथ ऐसा कुछ नहीं कर सकता”. इस पर भी लक्ष्मणजी का क्रोध शांत नहीं होता और वे कहते हैं कि राजकुमार भरत अपने उद्देश्य में कभी सफल नहीं होंगे और जब तक लक्ष्मण जीवित हैं, ऐसा नहीं होगा राजकुमार भरत अपने बड़े भाई राम से मिलने को आतुर हैं और इसी कारण वे अपनी सेना में सबसे आगे चल रहे हैं और उनके साथ तीनों माताएँ, कुल गुरु, महाराज जनक और अन्य श्रेष्ठी जन भी हैं. ये सभी मिलकर प्रभु श्री राम को वापस अयोध्या ले जाने के लिए आये हैं. जैसे ही राजकुमार भरत अपने बड़े भाई श्री राम को देखते हैं, वे उनके पैरों में गिर जाते हैं और उन्हें दण्डवत प्रणाम करते हैं,

साथ ही साथ उनकी आँखों से अविरल अश्रुधारा बहती हैं. भगवान राम भी दौड़ कर उन्हें ऊपर उठाते हैं और अपने गले से लगा लेते हैं, दोनों ही भाई आपस में मिलकर भाव विव्हल हो उठते हैं, अश्रुधारा रुकने का नाम ही नहीं लेती और ये दृश्य देखकर वहाँ उपस्थित सभी लोग भी भावुक हो जाते हैं. तब राजकुमार भरत पिता महाराज दशरथ की मृत्यु का समाचार बड़े भाई श्री राम को देते हैं और इस कारण श्री राम, माता सीता और छोटा भाई लक्ष्मण बहुत दुखी होते हैं. भगवान राम नदी के तट पर अपने पिता महाराज दशरथ को विधी – विधान अनुसार श्रद्धांजलि देते हैं और अपनी अंजुरी में जल लेकर अर्पण करते हैं अगले दिन जब भगवान राम, भरत, आदि पूरा परिवार, महाराज जनक और सभासद, आदि बैठे होते हैं तो भगवान राम अपने अनुज भ्राता भरत से वन आगमन का कारण पूछते हैं. तब राजकुमार भरत अपनी मंशा उनके सामने उजागर करते हैं कि वे उनका वन में ही राज्याभिषेक करके उन्हें वापस अयोध्या ले जाने के लिए आए हैं और अयोध्या की राज्य काज संबंधी जिम्मेदारी उन्हें ही उठानी हैं,

वे ऐसा कहते हैं. महाराज जनक भी राजकुमार भरत के इस विचार का समर्थन करते हैं. परन्तु श्री राम ऐसा करने से मना कर देते हैं, वे अयोध्या लौटने को सहमत नहीं होते क्योंकि वे अपने पिता को दिए वचन के कारण बंधे हुए हैं. राजकुमार भरत, माताएँ और अन्य सभी लोग भगवान राम को इसके लिए मनाते हैं, परन्तु वचन बद्ध होने के कारण भगवान श्री राम ऐसा करने से मना कर देते हैं. तब राजकुमार भरत बड़े ही दुखी मन से अयोध्या वापस लौटने के लिए प्रस्थान करने की तैयारी करते हैं, परन्तु प्रस्थान से पूर्व वे अपने भैया राम से कहते हैं कि “अयोध्या पर केवल श्री राम का ही अधिकार हैं और केवल वनवास के 14 वर्षों की समय अवधि तक ही मैं उनके राज्य का कार्यभार संभालूँगा और इस कार्य भार को सँभालने के लिए आप मुझे आपकी चरण- पादुकाएं मुझे दे दीजिये, मैं इन्हें ही सिंहासन पर रखकर, आपको महाराज मानकर, आपके प्रतिनिधि के रूप में 14 वर्षों तक राज्य काज पूर्ण करूंगा, परन्तु जैसे ही 14 वर्षों की अवधि पूर्ण होगी, आपको पुनः अयोध्या लौट आना होगा अन्यथा मैं अपने प्राण त्याग दूंगा राजकुमार भरत के ऐसे विचार सुनकर और उनकी मनःस्थिति को देखकर राजकुमार लक्ष्मण को भी उनके प्रति अपने क्रोध पर पश्चाताप होता हैं कि उन्होंने इतने समर्पित भाई पर किस प्रकार संदेह किया और उन्हें इन दुखी घटनाओं के घटित होने का कारण समझा. भगवान श्री राम भी अपने छोटे भाई भरत का अपार प्रेम, समर्पण, सेवा भावना और कर्तव्य परायणता देखकर उन्हें अत्यंत ही प्रेम के साथ अपने गले से लगा लेते हैं.

वे अपने छोटे भाई राजकुमार भरत को अपनी चरण पादुकाएं देते हैं और साथ ही साथ भरत के प्रेम पूर्ण आग्रह पर ये वचन भी देते हैं कि जैसे ही 14 वर्षों की वनवास की अवधि पूर्ण होगी, वे अयोध्या वापस लौट आएंगे. अपने बड़े भाई श्री राम के इन वचनों को सुनकर राजकुमार भरत थोड़े आश्वस्त होते हैं और उनकी चरण पादुकाओं को बड़े ही सम्मान के साथ अपने सिर पर रखकर बहुत ही दुखी मन से अयोध्या की ओर प्रस्थान करते हैं. अन्य सभी परिवार जन भी एक – दूसरे से बड़े ही दुखी मन से विदा लेते हैं जब राजकुमार भरत अपने राज्य अयोध्या लौटते हैं तो प्रभु श्री राम की चरण पादुकाओं को राज्य के सिंहासन पर सुशोभित करते हैं और वे स्वयं अपने बड़े भाई श्री राम की ही तरह सन्यासी वस्त्र धारण करके उन्हीं की तरह जीवन यापन करने का निश्चय करते हैं. वे अयोध्या के पास स्थित नंदीग्राम में एक साधारण सी कुटिया में रहते हैं और यहीं से प्रभु श्री राम के प्रतिनिधि के रूप में संपूर्ण राज-काज सँभालते हैं और अपने भाई श्री राम के राज्य की रक्षा करते हैं

आगे की कथा में पूज्य महाराज जी बोले कि वन गमन के दौरान इंद्रदेव का पुत्र जयंत पक्षी का रूप धारण कर भगवान राम की परीक्षा लेने के लिए मां सीता के पैर में चोंच मारकर लहूलुहान कर देता है इस नजारे को देख श्रीराम अचंभित होकर सीता से इसका हाल जानते हैं तत्पश्चात जयंत को मारने के लिए उन्होंने वाण छोड़ दिया। जयंत अपनी जान बचाने के लिए अनेक देवी- देवताओं की शरण में जाता है किंतु सभी ने यह कहकर दुत्कार दिया कि तुमने मां सीता का बहुत बड़ा अपमान किया है। अंत में नारद के कहने पर वह श्रीराम के चरणों में गिरकर माफी मांगने लगता है। सीता के कहने पर श्रीराम को दया आती है और सिर्फ उसकी एक आंख अंग-भंग कर छोड़ देते हैं आगे महाराज ने शबरी मैया की कथा सुनाते हुए कहा कि एक दिन जब शबरी यह सब कार्य कर रही थी तो ऋषिश्रेष्ठ ने उन्हें देख लिया। वे शबरी की सेवा भावना से अत्यंत प्रसन्न हुए। उन्होंने अपने आश्रम में शरण दे दी। शबरी वहीं पर रहने लगी। एक दिन जब ऋषि मातंग को लगा कि उनका अंत समय निकट है तो उन्होंने शबरी से कहा कि वे अपने आश्रम में ही प्रभु श्री राम की प्रतीक्षा करें। वे एक दिन अवश्य ही उनसे मिलने आएंगे।

मातंग ऋषि की मृत्यु के पश्चात शबरी का समय भगवान राम की प्रतीक्षा में बीतने लगा। वह अपने आश्रम को एकदम साफ-सुथरा रखती थी और प्रतिदिन भगवान राम के लिए मीठे बेर तोड़कर लाती थी। एक भी बेर खट्टा न हो इसके लिए वह एक-एक बेर चखकर तोड़ती थी। ऐसा करते-करते कई वर्ष बीतते चले गए एक दिन शबरी को पता चला कि दो सुंदर युवक उन्हें खोज रहे हैं, वे समझ गईं कि उनके प्रभु राम आ गए हैं। अब तक उनका शरीर बहुत वृद्ध हो गया था परंतु अपने प्रभु राम के आने की खबर सुनते ही उसमे चुस्ती आ गई और वो दौड़ती हुई, अपने प्रभु राम के पास पहुंची और उन्हें घर लेकर आई और उनके पांव को धोकर बैठाया। इसके बाद उन्होंने अपने तोड़े हुए मीठे बेर राम को दिए भगवान राम ने बड़े प्रेम से वे बेर खाए और अपनी भक्त शबरी की भक्ति को पूर्ण किया। राम जी ने लक्ष्मण को भी बेर खाने को कहा लेकिन उन्हें जूठे बेर खाने में संकोच हो रहा था,

फिर भी अपने भ्राता श्री राम का मन रखने के लिए उन्होंने बेर उठा तो लिए लेकिन खाए नहीं, कहा जाता है कि इसका परिणाम यह हुआ कि राम-रावण युद्ध में जब शक्ति बाण का प्रयोग किया गया तो मूर्छित हो गए थे हे प्रभु श्री राम जिस तरह से आपने माता शबरी पर अपनी कृपा बरसाई ऐसे ही हम सबके ऊपर अपनी कृपा दृष्टि बनाएं रखना कथा में पूर्व विधायक रसाल सिंह जी,ओमप्रकाश सिसोदिया,गिरीश अबस्थी,रमाकांत जी ब्यास,धर्मनाथ जी तिवारी,रोहित जी महाराज पीताम्बरा पीठ दतिया प्रमुख रूप से मौजूद रहे इस मौके पर कथा यजमान श्रीमति अरुणा नरेश शर्मा ने कहा कि कथा आरती के बाद भण्डारा प्रसाद ग्रहण कर अबश्य जाए और अपने जीवन को सफल बनायें ।।

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