2025-08-02 19:38:22
हाल ही में अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत की अर्थ व्यवस्था को लेकर एक बयान दिया। हमेशा की तरह विपक्ष ने विदेशी ‘राय’ को मौके की तरह लपक लिया। इसी क्रम में ट्रंप के बयान का समर्थन करते हुए कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने भी बयान दे दिया। हालांकि उनके बयान से उनकी पार्टी व उनके सहयोगी दलों ने ही किनारा कर लिया। लेकिन इस बयान से एक बार फिर विपक्ष की राजनीति और जमीनी हकीकत के बीच गहरी खाई उजागर हुई है। भारत की अर्थव्यवस्था पर दिया गया बयान केवल भ्रामक ही नहीं बल्कि भारत की वैश्विक साख का अपमान भी है। जब IMF, World Bank, Moody’s और यहां तक कि अमेरिका जैसे देश खुद भारत की आर्थिक नीतियों और विकास दर का लोहा मान चुके हैं, ऐसे में हाल के दावे या तो जानबूझकर भ्रम फैलाने के उद्देश्य से किये गए हैं या फिर एक आर्थिक रूप से अज्ञानी वक्तव्य है। अमेरिका खुद मान चुका है भारत को ‘विकसित’ 2019 में अमेरिका ने भारत को Generalized System of Preferences (GSP) के तहत दी जाने वाली विशेष व्यापारिक छूट को समाप्त कर दिया था। इसका कारण स्पष्ट किया था, अमेरिका का मानना था कि अब भारत एक ‘पर्याप्त विकसित’ अर्थव्यवस्था बन चुका है यानी भारत की अर्थव्यवस्था आज किसी बैसाखी की मोहताज नहीं है। यह अमेरिका की ओर से भारत की आर्थिक क्षमता को दिया गया एक अनौपचारिक प्रमाणीकरण था। आज जब ट्रंप भारत की अर्थव्यवस्था पर टिप्पणी करते हैं तो स्वयं उनकी विश्वसनीयता सवालों के घेरे में आती है। सवाल उठता है कि 2019 में उनकी बात सही थी या आज की? जिस भारत के आर्थिक विकास का वो लोहा मान रहे थे तो आज अचानक से वे अलग चश्मे से क्यों देखने लगे? इसका जवाब भारत की वैश्विक स्थिति व आंकड़े खुद देते हैं। मोदी सरकार में आर्थिक रूप से मजबूत हुआ भारत 2014 में जब नरेंद्र मोदी सरकार सत्ता में आई, तब भारत की GDP लगभग 2 ट्रिलियन डॉलर थी। आज भारत की अर्थव्यवस्था 3.9 ट्रिलियन डॉलर के आसपास पहुंच चुकी है और साल 2027-28 तक 5 ट्रिलियन डॉलर क्लब में शामिल होने का अनुमान है। IMF ने भी 2025 में यह स्पष्ट रूप से कहा है कि भारत 6.8% GDP ग्रोथ रेट के साथ दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ने वाली बड़ी अर्थव्यवस्था बना रहेगा। वहीं OECD, World Bank और ADB ने भी भारत की ग्रोथ को 6.5% से 7% के बीच रखा है, जो वैश्विक मंदी की आशंका के बीच बहुत सकारात्मक संकेत है। विदेशी निवेश का रिकॉर्ड स्तर किसी देश की अर्थव्यवस्था में निवेश का प्रवाह उसके स्थायित्व और संभावनाओं को दर्शाता है। FDI (Foreign Direct Investment) के मामले में भारत ने रिकॉर्ड स्तर पर निवेश आकर्षित किया है। 2021-22 में भारत में कुल 84 बिलियन डॉलर का FDI आया था, जबकि 2022-23 में भले ही वैश्विक स्तर पर मंदी का माहौल रहा हो, भारत ने फिर भी 71 बिलियन डॉलर से अधिक निवेश आकर्षित किया। इसके अलावा, Apple जैसी ग्लोबल कंपनियों ने भारत में अपने प्रोडक्शन बेस को चीन से हटाकर ट्रांसफर करना शुरू किया है, जो भारत के प्रति बढ़ते विश्वास का प्रतीक है। Tata Group और Vedanta-Foxconn जैसे भारतीय और विदेशी समूह भारत में सेमीकंडक्टर निर्माण की दिशा में अरबों डॉलर का निवेश कर चुके हैं। भारत का निर्यात आत्मनिर्भरता की ओर कदम 2023-24 में भारत का मर्चेंडाइज निर्यात 437 बिलियन डॉलर तक पहुंच गया, जो कोविड के बाद की दुनिया में एक बड़ी उपलब्धि है। सेवा क्षेत्र का निर्यात 340 बिलियन डॉलर से अधिक हो गया है, जिससे भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा सेवा निर्यातक देश बन गया है। जब विपक्ष के नेता भारत की अर्थव्यवस्था को ‘Dead’ कहते हैं, तो क्या वह इन रिकॉर्ड को भी नजरअंदाज कर रहे हैं? रोजगार और डिजिटल अर्थव्यवस्था EPFO (कर्मचारी भविष्य निधि संगठन) के आंकड़ों के अनुसार, हर महीने लगभग 16 से 18 लाख नए EPF खातों का निर्माण हो रहा है, जो संगठित क्षेत्र में नौकरियों की वृद्धि का प्रमाण है। इसके साथ ही भारत की डिजिटल अर्थव्यवस्था ने भी बड़ी छलांग लगाई है। UPI के माध्यम से जून 2025 में 18.23 लाख करोड़ रुपए के ट्रांजेक्शन हुए। भारत में आज प्रतिदिन 40 करोड़ से अधिक डिजिटल पेमेंट ट्रांजेक्शन होते हैं, जो अमेरिका, यूरोप और चीन को भी पीछे छोड़ चुके हैं। गरीबी पर जीत और सामाजिक सुरक्षा को बढ़ावा NITI Aayog की रिपोर्ट के अनुसार, 2015-16 से 2019-21 के बीच भारत में 13.5 करोड़ लोग गरीबी रेखा से ऊपर उठे हैं। ‘One Nation One Ration Card’ योजना, उज्ज्वला योजना, PM Awas Yojana और Ayushman Bharat जैसी योजनाओं ने गरीब और निम्न आय वर्ग की जिंदगी में अभूतपूर्व बदलाव लाया है। IMF ने भी भारत की इन सामाजिक सुरक्षा योजनाओं की सराहना की है। भारत की वैश्विक स्थिति भारत का G20 का नेतृत्व करना, International Solar Alliance और Global Biofuels Alliance जैसे प्लेटफॉर्म को स्थापित करना ये दर्शाता है कि आज भारत वैश्विक नेतृत्व में भी अहम भूमिका निभा रहा है। UAE और रूस से रुपये में व्यापार, चीन को पीछे छोड़कर अमेरिका का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार बनने की दिशा में बढ़ना,ये सब भारत की आर्थिक स्वतंत्रता और वैश्विक स्थिति का प्रतीक हैं। ऐसे बयान नासमझी ही नहीं, बल्कि आत्मघाती भी भारत को ‘डेड इकॉनॉमी’ कहना न सिर्फ तथ्यों से परे है, बल्कि देश की मेहनती जनता, उद्यमियों, वैज्ञानिकों और नीति-निर्माताओं का अपमान है। लोकतंत्र में आलोचना आवश्यक है लेकिन वह तथ्यों और ज़मीनी सच्चाई पर आधारित होनी चाहिए। विपक्ष को चाहिए कि वे देश की छवि को नुकसान पहुंचाने के बजाय जिम्मेदार अपोजिशन की भूमिका निभाएं। आज जब पूरी दुनिया भारत को भविष्य की आर्थिक महाशक्ति मान रही है, तब ऐसे बयान नासमझी ही नहीं, बल्कि आत्मघाती भी हैं। भारत एक जीवंत, आत्मनिर्भर और आकांक्षी अर्थव्यवस्था है और यह किसी राजनीतिक हताशा से नहीं रुकने वाली।