इसरोनासा का संयुक्त उपग्रह ‘निसार’ आज श्रीहरिकोटा से होगा लॉन्च, आपदा प्रबंधन में मददगार

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) और अमेरिका की अंतरिक्ष एजेंसी नासा मिलकर आज एक ऐतिहासिक उपग्रह ‘निसार’
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2025-07-30 21:08:58

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) और अमेरिका की अंतरिक्ष एजेंसी नासा मिलकर आज एक ऐतिहासिक उपग्रह ‘निसार’ (NISAR – NASA ISRO Synthetic Aperture Radar) को अंतरिक्ष में लॉन्च करने जा रहे हैं। यह उपग्रह बुधवार शाम 5:40 बजे आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से भारत के जीएसएलवी-एफ16 रॉकेट के माध्यम से छोड़ा जाएगा। इस संयुक्त मिशन की कुल लागत लगभग 1.5 बिलियन डॉलर (करीब 12,500 करोड़ रुपये) है, और इसका उद्देश्य धरती की सतह, प्राकृतिक आपदाओं और जलवायु परिवर्तन जैसी घटनाओं की निगरानी करना है। निसार मिशन खास इसलिए है क्योंकि यह पहला उपग्रह है जो धरती की तस्वीरें दो अलग-अलग रडार फ्रीक्वेंसी का इस्तेमाल करेगा। इसमें नासा का L-बैंड रडार और इसरो का S-बैंड रडार शामिल है। इन दोनों को नासा की 12 मीटर की खुलने वाली एंटीना से जोड़ा गया है, जो इसरो के I-3K सैटेलाइट प्लेटफॉर्म पर लगाई गई है। इस उपग्रह का वजन 2,392 किलोग्राम है और इसे 740 किलोमीटर ऊंचाई पर सन-सिंक्रीनस ऑर्बिट में स्थापित किया जाएगा, जहां से यह हर 12 दिन में धरती की 242 किलोमीटर चौड़ी पट्टी की हाई-रिजॉल्यूशन तस्वीरें लेगा। इसके लिए पहली बार आधुनिक SweepSAR तकनीक का उपयोग किया जा रहा है। इसरो के अध्यक्ष वी. नारायणन ने बताया कि यह उपग्रह किसी भी मौसम और रोशनी की स्थिति में दिन-रात (24×7) धरती की सतह की निगरानी करने में सक्षम होगा। उन्होंने बताया कि निसार भूस्खलन की पहचान करने, आपदा प्रबंधन में सहायता देने, ग्लेशियरों की स्थिति समझने और जलवायु परिवर्तन पर नजर रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। उन्होंने रविवार रात चेन्नई एयरपोर्ट पर कहा, “यह सभी मौसमों में 24 घंटे काम करने वाला उपग्रह है, जो विज्ञान और समाज दोनों के लिए उपयोगी जानकारी देगा।” नासा और इसरो दोनों ने इस मिशन में अपनी-अपनी तकनीकी विशेषज्ञता साझा की है। नासा ने एल-बैंड रडार, 12 मीटर की रडार एंटीना, हाई रेट टेलीकम्युनिकेशन सिस्टम और GPS रिसीवर मुहैया कराए हैं, जबकि इसरो ने एस-बैंड रडार पेलोड, उपग्रह संरचना, GSLV-F16 रॉकेट और लॉन्च सेवाएं दी हैं। यह मिशन भारत-अमेरिका के बीच अंतरिक्ष सहयोग की मिसाल है और भविष्य में वैज्ञानिकों को पृथ्वी की बेहतर समझ प्रदान करेगा।

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