2025-08-08 17:38:07
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज एक जटिल कूटनीतिक और राजनीतिक परिस्थिति का सामना कर रहे हैं। एक ओर अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भारत को रूस से तेल खरीदने के लिए शुल्क बढ़ाने और दंडात्मक कार्रवाई की धमकी दे रहे हैं, वहीं दूसरी ओर प्रधानमंत्री मोदी भारत-रूस ऊर्जा साझेदारी को मजबूती से बनाए रखना चाहते हैं। इसके पीछे सिर्फ आर्थिक कारण नहीं, बल्कि एक व्यापक भू-राजनीतिक संदेश भी है कि पश्चिम के सामने झुकने का युग अब समाप्त हो चुका है। देखा जाये तो मोदी सरकार वैश्विक मंचों पर ग्लोबल साउथ की आकांक्षाओं की प्रतिनिधि बनकर उभरी है। यूक्रेन युद्ध के बाद पश्चिमी प्रतिबंधों और नैतिक उपदेशों के बावजूद भारत ने रूस के साथ अपने हितों को स्वतंत्र रूप से साधने की नीति अपनाई। यह वही “रणनीतिक स्वायत्तता” है, जिसकी बात भारत दशकों से करता आया है, पर जिसे आज व्यवहार में लाने का साहस शायद पहली बार किसी सरकार ने इस हद तक दिखाया है। प्रधानमंत्री मोदी के लिए यह चुनौती केवल बाहरी नहीं है। देश के भीतर कांग्रेस जैसे विपक्षी दल उनकी अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से निकटता पर तंज कस रहे हैं। “माई फ्रेंड डोनाल्ड” जैसे वाक्य अब राजनीतिक व्यंग्य बन चुके हैं। कांग्रेस यह सवाल उठा रही है कि अगर अमेरिका से घनिष्ठता इतनी ही प्रभावशाली थी, तो भारत को टैरिफ धमकी क्यों झेलनी पड़ रही है? देखा जाये तो यह आलोचना राजनीतिक रूप से स्वाभाविक है, पर इसमें कूटनीतिक यथार्थ की गहराई को नजरअंदाज किया जा रहा है। भारत आज आर्थिक, सामरिक और राजनीतिक दृष्टि से एक उभरती शक्ति है और ऐसे में विश्व के साथ उसकी मोल-भाव करने की शैली भी बदली है। मोदी जिस भारत का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं, वह न केवल अपने हितों की रक्षा करना जानता है, बल्कि विकल्पों का निर्माण भी कर रहा है— जैसे BRICS+ का मंच, ऊर्जा विविधता की दिशा में कदम और नए व्यापारिक सहयोग। इसके अलावा, “मोदी है तो मुमकिन है” सिर्फ एक नारा नहीं, बल्कि इस समय एक परीक्षण की कसौटी बन चुका है। प्रधानमंत्री को अब यह साबित करना है कि वह पश्चिम के दबाव को संतुलित करते हुए, रूस से रिश्ते बनाए रखते हुए और विपक्ष की आलोचनाओं को दरकिनार करते हुए भारत को एक स्वाभिमानी, आत्मनिर्भर और वैश्विक नेता के रूप में उभार सकते हैं। देखा जाये तो इस लक्ष्य तक पहुंचने के लिए मोदी को तीन स्तरों पर निर्णायक पहल करनी होगी- 1. अमेरिका के साथ संवाद बनाए रखते हुए, ट्रेड वार को टालना होगा और भारत की रणनीतिक स्वायत्तता की स्पष्ट पैरवी करनी होगी। 2. घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देना होगा ताकि आयात और शुल्क जैसे हथियारों का असर सीमित हो और ऊर्जा आपूर्ति में विविधता भी लानी होगी। 3. आंतरिक एकता और विपक्ष के प्रहारों का उत्तर तथ्यों और नीतिगत पारदर्शिता से देना होगा, ताकि राष्ट्रीय हित सर्वोपरि दिखाई दे।