2025-05-28 16:44:32
रेवाड़ी: यह सर्वविदित है कि तंबाकू फेफड़ों के कैंसर का कारण बनता है, लेकिन यह अकेली बीमारी नहीं है जो तंबाकू से होती है। तंबाकू चाहे सिगरेट, बीड़ी, हुक्का के रूप में पीया जाए या खैनी, मावा, पान, पान मसाला जैसे रूपों में चबाया जाए — हर रूप में हानिकारक है। महत्वपूर्ण बात यह है कि तंबाकू की कोई भी मात्रा सुरक्षित नहीं मानी जाती। धूम्रपान से फेफड़ों की नाजुक झिल्लियां नष्ट होती हैं और ऑक्सीजन ले जाने की क्षमता प्रभावित होती है। इसके अलावा, धूम्रपान शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को उत्तेजित करता है जिससे हानिकारक तत्व निकलते हैं और फेफड़ों की सेहत और बिगड़ती है। फेफड़ों के कैंसर के अलावा, लंबे समय से धूम्रपान करने वालों में क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव लंग डिजीज (COPD) और ब्रोंकाइटिस जैसी गंभीर समस्याएं भी देखी जाती हैं। मैक्स सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल, द्वारका के सर्जिकल ऑन्कोलॉजी - हेड एंड नेक विभाग की एसोसिएट डायरेक्टर व यूनिट हेड डॉ. शिल्पी शर्मा ने बताया कि “चबाने वाले तंबाकू का सबसे बड़ा दुष्परिणाम मुंह का कैंसर है। यह एक ऐसा कैंसर है जो मुख्यतः भारत में ही देखने को मिलता है। इसका कारण है तंबाकू के बीड़े को मसूड़ों और गाल के बीच (जिन्गिवो-बक्कल सल्कस) में रखने की आदत, जो हमारे देश में व्यापक रूप से प्रचलित है। भारत दुनिया में तंबाकू का तीसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश है, जिससे इसकी उपलब्धता बहुत आसान हो गई है। नतीजन, हमारे देश में मुंह के कैंसर के मामले दुनिया में सबसे अधिक हैं। हर साल लाखों नए मुंह के कैंसर के मरीज सामने आते हैं, जिनमें से लगभग आधे एक साल के भीतर दम तोड़ देते हैं। मुंह का कैंसर भारत में कैंसर से होने वाली मौतों का सबसे बड़ा कारण बन चुका है।“ मुंह और फेफड़ों के कैंसर के अलावा, जो भारतीय पुरुषों में सबसे आम हैं, तंबाकू का सेवन लैरिंक्स, फैरिंक्स, इसोफेगस, पैंक्रियास, पेट, सर्विक्स, मूत्राशय, स्तन आदि अंगों के कैंसर का भी कारण बन सकता है। डॉ. शिल्पी ने आगे बताया कि “सिर्फ कैंसर ही नहीं, तंबाकू का सेवन हमारे शरीर के लगभग हर अंग को प्रभावित करता है और कई अन्य गंभीर बीमारियों का कारण बनता है। फेफड़ों की कार्यक्षमता में कमी के चलते गंभीर फेफड़ों के संक्रमण, हृदय रोग, धमनियों में रुकावट से पैरों की उंगलियों में गैंग्रीन, और दृष्टिहीनता जैसी गंभीर बीमारियाँ तंबाकू से हो सकती हैं। तंबाकू उद्योग अपने उत्पादों को आकर्षक बनाने के लिए उनमें फ्लेवर और रसायन मिलाकर उनकी गंध और स्वाद को बदल देता है, जिससे वे युवाओं को अधिक आकर्षित करते हैं। यह एक सोची-समझी रणनीति है जिससे युवा पीढ़ी को तंबाकू की ओर खींचा जा सके।“ इस वर्ष वर्ल्ड नो टोबैको डे की थीम भी इसी पर आधारित है —आकर्षण का सच उजागर करना: तंबाकू और निकोटीन उत्पादों को लेकर उद्योग की चालों को बेनकाब करना। आइए हम सभी इस अभियान में शामिल हों और मिलकर एक तंबाकू मुक्त दुनिया की ओर कदम बढ़ाएं।