2023-09-05 12:09:10
आस्था
बिहार की राजधानी पटना से करीब 150 किलोमीटर दूर गोपालगंज जिला के जिला मुख्यालय से करीब 6 किलोमीटर हटकर एक मंदिर है थावे मंदिर
कहा जाता है कि इस थावे मंदिर का निर्माण 15वीं शताब्दी में किया गया था जब मां दुर्गा असम से चलकर यहां आई थी। यह देश के 52 शक्तिपीठों के समान ही है। इस मंदिर के बीचोबीच एक रहस्यमई पेड़ है जिसके वानस्पतिक परिवार का अभी तक पहचान नहीं किया जा सका है..!!
यहां मनोकामना मांगने वाले की हर मनोकामना पूर्ण होती है। इस मंदिर को थावे वाली माई के मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। यहां माता को कामाख्या वाली माता और सिंहासिनी देवी के रूप में भी जाना जाता है। यहां का मुख्य प्रसाद है पीड़किया।
थावे वाली माई मंदिर का इतिहास
कहा जाता है कि यहां 14वीं शताब्दी में चेरो वंश के राजा मनन सिंह खुद को माँ दुर्गा का बहुत बड़ा भक्त मानते थे। एक बार अचानक राजा के राज्य में अकाल पड़ा। वहीं थावे में माता रानी की एक भक्त थी। अकाल के दौरान रहशू प्रतिदिन एक बाघ से मिलता था और मिल कर जब रहशु बाघ के पास से चलता तो अन्न निकलने लगता। एक और बात कही जाती है कि रहशू दिन में घास काटता और रात में उसी से अनाज निकलते.!!
इसलिए वहां के लोगों को खाद्यान्न मिलने लगा, बात राजा तक पहुंच गई, लेकिन राजा को विश्वास नहीं हुआ, राजा ने रहशु का विरोध किया और उसे पाखंडी कहा और रहशु को अपनी मां को यहां बुलाने के लिए कहा, इस पर रहशु ने राजा से कहा कि यदि माता यहां आई तो वह राज्य का नाश कर देगी लेकिन उसे राजा नहीं माना, रहशु भगत के आह्वान पर, देवी माँ कामाख्या से चलकर पटना और सारण के अमी से होते हुए गोपालगंज के थावे मन्दिर, बिहार पहुंचीं। राजा की सभी इमारतें ढह गईं..!!
और तब राजा की मृत्यु हो गई..!!